Tuesday, December 1, 2009

Bachchan Sandhya Part 3 - 1


बच्चन संध्या भाग – 3

जो बीत गई सो बात गई- कवि बच्चन कि अनन्यतम रचनाओं मे से एक है, कितने गहरे भाव के साथ लिखी इस कविता के लिये जब पुष्पा जी ने जया बच्चन को आमंत्रित किया तो पहले पहल तो मुझे लगा था कि क्या जया जी इतनी गंभीर कविता के साथ न्याय कर पायेंगी, अगर मैने वह प्रसंग़ जया जी तथा बाबूजी के बारे में ध्यान से सुना होता तो अवश्य ही मुझे याद रहता कि जया जी कितनी संवेदनशील है, मुझे इतना ही याद है कि शायद उस जिक्र से मंच पर भी उनकी आंखे भर आई थी –


यह कविता तो अभी कुछ ही दिनों पहले यहां लिखी थी – फिर भी जया जी की प्रस्तुति मेरी उम्मीद से कहीं बहुत ही अच्छी थी, हर कोई तो भाईसाहब की तरह कविता पाठ नही ही कर सकता फिर भी जया जी की काव्यांजलि काफ़ी सुंदर थी –

जो बीत गई सो बात गई ।

जीवन में एक सितारा था,
माना वो बेहद प्यारा था
वह डूब गया तो डूब गया
अंबर के आनन को देखो
...
पर बोलो टूटे तारों पर
कब अंबर शोक मनाता है
जो बीत गई सो बात गई ।

मुझे यह कहते हुए या बताते हुये विशेष हर्ष नही हो रहा है कि जया जी के बारे में इस प्रसंग को मैने शायद इसलिये ध्यान से नही सुना कि मेरा ध्यान भंग हो रहा था, मै देख रहा था कि भाईसाहव असल ज़िंदगी में भी कितने महान व्यक्तित्व के स्वामी हैं । वास्तव में कई क्षण तो मुझे इस बात का यकीन ही नही हो रहा था कि मै बच्चन संध्या में प्रवेश पा चुका हूं या अमिताभ बच्चन नामक महान कलाकार मेरे से 100-200 मीटर की दूरी पर ही विराजमान है । मै बीच बीच में कुछ कुछ अपने आप में खो सा जाता था । पुष्पा जी अक्सर मनुष्य के साथ अकस्मात क्षणों में कभी कभी ऎसा हो जाता है जब वह लगभग हक्का-बक्का रह जाता है, मुझे आशा है कि मेरी साफगोई से आप दोनो को परेशानी नही होनी चाहिये, जानबूझकर मैने ऎसा नह किया था । जया जी आपका कविता पाठ इतना सुंदर था कि उसने मेरे अमिताभ-मोह को भंग कर दिया था-


मदु मिट्टी के है बने हुये
मधुघट फूटा ही करते है
लघु जीवन लेकर आये है
प्याले टूटा ही करते हैं ।

यहां एक छोटी सी विश्लेषणा अवश्य ही जोड़ना चाहूंगा –
डाक्टर बच्चन को मिट्टी से बेहद प्यार था तभी शायद अपने बारे में उन्होने कहा होगा –

मिट्टी का तन, मस्ती का मन
क्षण भर जीवन, मेरा परिचय !

Abhaya Sharma


December 1/2 2009 12:10 AM




No comments:

Post a Comment