Wednesday, September 9, 2015


यहां एक लिम्ख दी गई है
दसवें विश्व हिंदी सम्मेलन पर एक लघु संदेश
https://sites.google.com/a/abhayasharma.net/www/vhs_Bhopal

हिन्दी-जगत विस्तार की संभावनायें

(दसवें विश्व हिंदी सम्मेलन के उपलक्ष पर एक लघु संदेश)

अभय शर्मा

वरिष्ठ प्रबंधक एवं वैब सूचना प्रबंधक, विकिरण एवं आइसोटोप प्रौद्योगिकी बोर्ड


 
दसवें विश्व हिन्दी सम्मेलन के अवसर पर सभी हिन्दीभाषियों एवं देशवासियों को अनेकानेक शुभकामनायें । भारत अनेक विविधताओं का देश है, यहां अलग अलग राज्यों और उनकी सीमाओं पर  पहनावे, संस्कृति और खान-पान के साथ बोल-चाल की अलग अलग भाषायें भी देखी जा सकती है ।


इस विविधता को भाषा की दृष्टि से देखें तो पता चलेगा कि विश्व में सर्वाधिक प्रयोग में लाई जाने वाली कई एक भाषायें भारत से जुडी है जिनमें हिन्दी, उर्दू, बंगला एवं अंग्रेजी प्रमुख हैं । हिन्दी को ही लें, हिन्दी में भी इतनी विविधता देखने को मिलती है कि कई बार एक क्षेत्र में प्रचलित हिन्दी अन्य क्षेत्र के लिये अच्छी खासी दिक्कत पैदा कर सकती है ब्रज, अवधी और भोजपुरी समझना एक अन्य हिन्दी शिक्षित व्यक्ति के लिये उतना ही कठिन है जितना अंजान व्यक्ति के लिये संस्कृत ।

 
आज चाहे हम यह बात स्वीकार करें या ना करें पर भारत में भाषा को लेकर एक प्रकार की तना-तनी की स्थिति सदैव ही बरकरार रही है, वर्तमान में राजभाषा के नाम पर हमारे पास कुछ नही तो लगभग बाईस भाषायें है, भविष्य में इनकी संख्या अधिक भी हो सकती है। किसी दूसरे राष्ट्र की राष्ट्रभाषायें भी हमारी राजभाषाओं की सूची में सम्मिलित है ।

 
भारत की अन्य भाषाओं के प्रति उदारता का एक उदाहरण उर्दू (पाकिस्तान एवं अन्य), नेपाली (नेपाल) और बांग्ला (बांग्लादेश) भाषाओं का हमारी राष्ट्र-भाषा की सूची में सम्मिलित होना है। यहां यह बात विवाद का विषय भी बन सकती है। कहने वाले अवश्य ही कहेंगें कि उर्दू और बांग्ला पहले भारत की और बाद में पाकिस्तान या बांग्लादेश की भाषायें है। मात्र नेपाली ही एक पर-राष्ट्रभाषा है जिसे हमने संयोग से अपना लिया है तथपि नेपाल का भारत से विशेष  स्नेह और लगाव इसे भी आपत्तिजनक नही ठहराता ।


हिन्दी हमारी प्रमुख राजभाषा है, फिर चाहे हमारे कामकाज की मुख्य भाषा अंग्रेजी ही क्यों न हो।  अंग्रेजी हमारी राजभाषा नही हो सकती, शायद इसी भेद के आधार पर अंग्रेजी को भारत की 22 राष्ट्रभाषाओं की सूची में भी सम्मिलित नही किया गया है।  आप लोग सोच रहे होंगे कि आखिर मै क्या निष्कर्ष निकालना चाहता हूं, आखिर इस विषय में आप सबसे कहना क्या चाहता हूं ।
 

यहां इतना ही कहना है कि हिन्दी को हम उसका उचित स्थान दें, मैं नही कहता कि हम अन्य राज्यों या राष्ट्रों की भाषाओं को सम्मान न दें पर अपनी प्रमुख राजभाषा की अवमानना तो न करें । आज हिन्दी सिनेमा ने विश्व भर में अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाई है, चाहे हॉलीवुड जितनी व्यापक सफलता से हम अभी भी पीछे हों पर आज हिन्दी सिनेमा हिन्दुस्तान के बाहर कई मुल्कों में देखा जाता है, सराहा जाता है और पसंद किया जाता है। इसका एक मुख्य कारण ऐसे देशों में भारतीयों की बढती तादाद हो सकती है फिर यह प्रशन पुन: उजागर होता है कि हमारी भारतीय विविधता का प्रश्न वहां क्यों नही पैदा होता।

 
मेरे पास आंकड़े तो नही हैं पर दावे के साथ कह सकता हूं कि भारत के विभिन्न राज्यों से दुनिया के भिन्न-भिन्न देशों में गये हुये भारतीय मूल के नागरिक जब पहली बार एक दूसरे से मिलते हैं या जब दिल खोल कर मिलते है तब उनकी बातचीत या गुफ्तगू अंग्रेजी अथवा उनकी अपनी राजकीय भाषा में नही वरन हिन्दी में होती है। कहने वाले तो यहां तक कह देते है कि हिन्दुस्तानी आपस में ही नही बल्कि जब मॉरिशियस, नेपाल, पाकिस्तान और बांग्लादेश के लोगों से भी इन दूसरे मुल्कों में मिलते हैं तब भी देखा गया है कि बातचीत का सिलसिला अक्सर हिन्दी में ही होता है ।


एक अन्य उदाहरण हिन्दी की महत्वपूर्ण राष्ट्रीय स्तर की भाषा होने का उन विदेशी टेलीविज़न कंपनियों द्वारा मिलता है, जिन्होने अपने निजी हित को ध्यान में रखकर भारत में पहले पहल अपने कर्यक्रमों की डॅबिंग अन्य भाषाओं की अपेक्षा हिन्दी में कराने  का फैसला लिया। फिर वो चाहे कार्टून नैट्वर्क हो या डिस्कवरी चैनल या कोई अन्य सबसे पहले हिन्दी में इसलिये शुरु किये गये कि अधिक से अधिक लोग इन कार्यक्रमों को देख सकें।

आंकड़े बताते हैं कि हॉलीवुड की कितनी चर्चित फिल्में किस भारतीय भाषा में सबसे अधिक डब की गईं । चौंकियेगा मत साहब उत्तर तमिल या बंगला नही हो सकता, आप माने या ना माने पर वितरक जानता है कि भारत की किस एक भाषा में उसे अपनी फ़िल्म को सबसे पहले डब करना है । जी हां, वह सबसे पहले हिन्दी में ही फ़िल्म रिलीज करता है ।


जब सारी दुनिया यह मानने को तैयार है कि हिन्दी ही भारत की सबसे लोकप्रिय भाषा है तब हम इस सच को झुठलाने पे क्यों आमादा है, क्यों हम राष्ट्रीय स्तर पर इस बात का समर्थन करने को तैयार नही कि हां हिन्दी ही हमारी प्रमुख राजभाषा है, या होनी चाहिये । क्यों राष्ट्रीय एकता के लिये हम हिन्दी की शरण लेने में कायरता दिखाते है या किन कारणों से ऐसा करने में अपने आपको असमर्थ एवं असहाय घोषित कर देते हैं।

प्रश्न उठता है कि हिन्दी को किस प्रकार राष्ट्र हित से जोडा जाये, यह किसकी जिम्मेदारी होनी चाहिये, किस हद तक हमें राष्ट्र का हिन्दीकरण करना चाहिये, किन किन क्षेत्रों में रोष पैदा होने की संभावना है, उससे कैसे निपटा जाना चाहिये । कैसे हमें सबको एक साथ लेकर हिन्दी को आगे बढाने का प्रयास करना है ।

अगर हम कहें कि प्रत्येक भारतवासी से हम ऐसी अपेक्षा रखें कि वे स्वयं ही इस दिशा में अग्रसर होकर हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रुप में बढावा दें तो गलत न होगा। यह हम सभी का कर्तव्य बनता है कि अपने राष्ट्र को एक राष्ट्रभाषा देने का हम सब तथाकथित प्रयास अवश्य करें । विद्वानों का मानना है कि इस प्रकार हमें अपने लक्ष्य  में शीघ्र सफलता मिल सकती है।  

अगर हम गर्व  के साथ हिन्दी को अपनी राजभाषा स्वीकार नही कर सकते तब जोर जबरदस्ती से थोपी हुई कोई भी भाषा किसी के भी गले नही उतर सकती और न ही सही मायनों में ऐसी कोई भी भाषा राजभाषा या राष्ट्रभाषा का स्थान ले सकती है।


आप लोगों की जानकरी के लिये देश की चुनिंदा प्राचीन आईआईटी(स) में मात्र आईआईटी मद्रास की वैबसाईट ही हिन्दी में भी उपलब्ध है, और हम लोग यह मान कर चलते है कि तमिलनाडु में हिन्दी का विरोध होता है, यह उचित नही है यह सर्वथा निराधार है ।


हिन्दी का सर्वाधिक विरोध तो उन हिन्दीभाषी राज्यों में होता है जहां लोगों को इच्छा के विपरीत भी अंग्रेजी में ही महारत हासिल करने के लिये उकसाया और प्रेरित किया जाता है। जहां रामधारी सिंह दिनकर को उपेक्षा और वॅर्डसवर्थ को सह्रदय सराहना की दृष्टि से देखा जाता है, जहां प्रेमचंद को अलग तरह और शेक्सपियर को प्रशंसात्मक नजरिये से देखा जाये या जहां भारतेंदु हरिश्चन्द्र को मामूली और बर्नार्ड शॉ को अनोखी मिल्कियत का मालिक समझा जाये, वहां न हिन्दी पनपेगी और न ही पनप सकती है ।

हमें स्वयं ही निश्चय करना है कि हम हिन्दी को किस धरातल पर ले जाना चाहते हैं, हिन्दी को नई उचांइयों तक ले जाने के लिये हमें क्या करना हैं या विश्व के मानचित्र पर हिन्दी की एक अलग पहचान बनाने के लिये कमर कसके कैसे तैयार रहना है । अगर हम समझते है या चाहते है कि कोई अन्य राष्ट्र आकर इस दिशा में हमारा मार्ग दर्शन करे, या कोई हमारा हाथ पकड़ कर हमें उन उंचाइयों पर पहुंचा दे या फिर दुनिया में हमारी एक नई पहचान स्थापित कर दे तो यह दिन में सपने देखने के सिवाय कुछ भी नही है। अपनी भाषा को अगर आगे  बढ़ाना है तो कुछ न कुछ तो इस दिशा में हमे स्वयं ही करना होगा। जर्मनी, चीन रूस, फ्रांस इत्यादि प्रेरणा के स्त्रोत बन सकते हैं इससे अधिक कुछ भी नही ।  हिन्दी का आविष्कार की कुछ पंक्तिया याद आ रही हैं

 

हमको तुझसे प्यार है भाषा
भारत की अब एक ही आशा
सबको एक साथ लेकर
जब हिन्दी आगे आयेगी
नई क्रांति कि किरण फूटकर
विश्व पटल पर छायेगी ..

 
मेरे प्रियतम कवि डॉक्टर हरिवंश राय बच्चन की सर्वप्रिय रचना मधुशाला के आधार पर कुछ एक पंक्तियां किसी समय एक अभिलाषा के साथ उनके पुत्र अमिताभ बच्चन के लिये कभी लिखी थीं -शायद मेरा आशय ABCL को अमिताभ बच्चन’स कॉंप्लैक्स ऑफ लायब्रेरीज़ में पुनर्गठित करने को लेकर था । यहां मुझे विशेष हर्ष है कि मै डॉक्टर बच्चन से उनकी म-त्यु के पश्चात भी 28 नवंबर 2009 को मिल सका था.. उनके इस बहिर्मुखी पुत्र ने उस दिन उनकी कविताओं के पाठ द्वारा उन क्षणों में तो उन्हे जीवंत ही कर दिया था ..

मधुशाला के पन्नो पर ही लिखी मैने मधुशाला
मधुशाला था नाम दिया पर कर्म था उसका ग्रंथाला
कवि बच्चन के पुत्र सुपुर्द है इस मधुशाला की अभिलाषा
वैसे तो मैं दान नही मांगा करता..
फिर भी इस प्रयास में मेरे गर नाम तुम्हारा जुड़ जाये
आशा है मुझको विश्व वेदी पर अमिट तुम्हारी होगी आभा
शान बढेगी मान बढ़ेगा दिन दूना सम्मान मिलेगा
आओ अमित आगे बढ आओ रच दो अब नई मधुशाला
जिसके पथ पर चलने वाला पढ पढ़ कर होगा मतवाला
धूम मचा कर रख देगी जिस जगह बनेगी मधुशाला ..
 

अभय शर्मा
मुम्बई, भारत ।