Monday, December 21, 2009

Day 609 - Buddha Aur Naach Ghar

Respected Brother
Sadar Charan Sparsh

I must admit here that I was preoccupied yesterday with Buddha Aur Naachghar. I had painstakingly written it from thye mp3 file of the rendition by you.. It remains one of the best what you had delivered on 28th November at Bachchan Sandhya.. best after the Madhushala by Dr. Bachchan as far as I am concerned..

I could not get m hands on to the Navneet that day which was being distributed at Bachchan Sandhya and to my surprise I could not find a copy at the stands in Chembur.. hopefully I shall buy a copy before it is too late.. I may after all not be in a position to buy the coffee table edition of Madhushala.. No, no, you need not bother brother to send me a copy.. it is all right.. my love for Madhusala and Dr. Bachchan can not diminished or emphasised by having or not having the coffee table edition.. kaafee kuchh to mujhe jabaani yaad hai.. Hindi edition with a foreword from you was always there with me and the soft copy is also available on net..

लिखी भाग्य में जितनी बस उतनी ही पाएगा हाला,
लिखा भाग्य में जैसा बस वैसा ही पाएगा प्याला,
लाख पटक तू हाथ पाँव, पर इससे कब कुछ होने का,
लिखी भाग्य में जो तेरे बस वही मिलेगी मधुशाला।।७०।

I know I have no regrets of not having met you on that evening.. it is all right there will be next time too.. we shall meet only when there is appropriate reason for such meeting.. otherwise where exactly is the need other than just seeking your blessings by bending over to touch my brother's feet.. you are truly the best creation of Dr. Bachchan.. and having spend three hours with you that evening can not be underestimated as you were far too closer to me than the Hope 86 program at Brabourne stadium which I had seen from the railings.. it is all right.. jahan man mile ho vahan tan ka milana koi khaas mayane nahi rakhata.. nahi rakh sakata.. phir bhi kabhi kabhi aap ko chhoo kar dekhane ki abhilasha man mein paida hoti hai.. shayad Amrit ke liye.. you know he does not address you as Amitabh Bachchan.. he always says aapke bhaaisahab.. kitana achchhA lagata hai yah sunkar..

उस प्याले से प्यार मुझे जो दूर हथेली से प्याला,
उस हाला से चाव मुझे जो दूर अधर से है हाला,
प्यार नहीं पा जाने में है, पाने के अरमानों में!
पा जाता तब, हाय, न इतनी प्यारी लगती मधुशाला।।९९।

So I do want to live with this ambition of meeting you someday rather than actually meeting you..nahi nahi bhaai.. agar aap aadesh karenge to main aapka adesh thode hi taal sakata hoon.. main jaanata hoon ki aap koi bhi aisa aadesh nahi denge jo mere liye mumkin na ho..

chalo khair ab aaj ke liye vida leta hoon.. kal aap logon ko kaafi bore kiya thaa.. aaj aap nischint rahen.. jyada bore nahi karunga..

नहीं चाहता, आगे बढ़कर छीनूँ औरों की हाला,
नहीं चाहता, धक्के देकर, छीनूँ औरों का प्याला,
साकी, मेरी ओर न देखो मुझको तिनक मलाल नहीं,
इतना ही क्या कम आँखों से देख रहा हूँ मधुशाला।।१०४।

Love Respect and Regards
Abhaya Sharma
Addendum
(The link to the famous Buddha Aur Naach Ghar)

Respected Brother
Sadar Charan Sparsh
As per the promise I have finally uploaded the page that I wanted to serve as a dedication to the memories of your beloved mother Shrimati Teji Bachchan ji. The pdf version of the page is available at the following link..
http://www.angelfire.com/ab/abhayasharma/buddha_naach.pdf
May her soul rest in Peace and may she be having a great time in the Heavens!
Love and regardsAbhaya Sharma




Sunday, December 20, 2009

Bachchan Sandhya Part IV -2

बच्चन संध्या चतुर्थ भाग - द्वितीय खंड
आदरणीय भाईसाहब,
सादर चरण स्पर्श,
इधर कई दिनों से बच्चन संध्या के विषय में कुछ नही लिख पा रहा था, अपने हस्तलिखित दस्तवेजों को भी टाईप कर आप सब तक पहुंचाने का समय नही मिल पा रहा था, वैसे, समय के अतिरिक्त हिंदी में टाईप करने में जिन कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है शायद वे भी इस का एक कारण हो सकती हैं ।

चलिये ब अधिक समय नष्ट करने के बजाय हम लोग बच्चन संध्या के चतुर्थ भाग की ओर अग्रसर हो लें तो बेहतर रहेगा । प्रथम खंड के अंत में मैने कहा था कि हम लोग डॉक्टर बच्चन के जीवन में किस तरह मिस तेजी सुरी का आगमन हुआ उसकी विशेष चर्चा रहेगी ।
डॉक्टर पुष्पा भारती जी ने बताया कि हुआ यूं था कि बच्चन जी अबोहर में कविता पाठ
के लिये गये हुये थे कि वहां बरेली कॉलेज के ज्ञान प्रकाश जौहरी जो उनके परम मित्रों में से थे उन्हे तुरंत बरेली पहुंचने को कहा, वहां पहुंचने पर किन परिस्थितियों में उनकी मिस तेजी सुरी से पहली मुलाकात हुई उसका वर्णन बहुत ही सुंदर शब्दों मे पुष्पा जी ने किया था । किस कदर खूबसूरत अंदाज में उन्होने उपस्थित लोगों को बताया कि पहली ही मुलाकात में दोनो एक दूसरे के हो गये थे, कासे बच्चन जी ने उन्हे कविता सुनाई थी किस तरह दोनो एक दूसरे के प्रति इतना आकृष्ट हुये कि कविवर कविता सुनाते जाते मिस सुरी अपनी अश्रु-धारा से उनके साथ साथ बहती चली गईं, फिटन की सवारी, लाल गुलाब की दो मालायें एक दूसरे के प्रति प्रतिबद्ध होने की घटना इत्यादि ने मुझे तो सम्मोहित सा कर दिया था । यह सब मेरा पढा हुआ था फिर भी ऎसा लगा कि जैसे कोई ऑई विटनैस बखूबी घटित घटनाक्रम का ज्यों का त्यों ब्यौरा दे रहा हो । मुझे तो यह प्रसंग इसलिये भी अधिक रुचिकर लगा हो कि कुछ समग्री इस विषय पर कभी मैने भी यहं अंग्रेजी में उपलब्ध कराई थी ।

एक अन्य किस्सा उन्होने सरोजिनी नायडू व नेहरू जी के विषय में भी यूं सुनाया था –
सरोजिनी नायडू ने घुंघराले बाल वाले नवयुवक का परिचय पंडित जवाहर लाल नेहरू से यह कहते हुये किया - ही इज़ द पॉयट, इससे पहले कि वे तेजी जी का परिचय कराने के लिये घूमती नेहरू जी तपाक से बोल पड़े – एंड शी इज़ द पॉयट्री , बड़े लोगों की बड़ी बातें नेहरू जी ने पहले ही समझ लिया था कि सरोजिनी नायडू क्या कहना चाहती थी । यह तो जग विदित है कि तेजी बच्चन जी की आगे चलकर पंडित जी की बेटी प्रियदर्शिनी से अच्छी खासी दोस्ती रही, अवश्य ही पंडित जी ने तेजी बच्चन में कविताई को देखने में कोई भूल नही की थी । कविवर बच्चन के जीवन में तेजी सुरी के आने से कविता एक बार फिर अपने मधुशाला वाले रूप में चहकने लगी थी । अगर आज मै आप लोगों को एक बार फिर से प्रणय-प्रसंगिनि वाली अपनी कविता नही सुनाउं, मेरा अपने प्रति अन्याय होगा साथ ही स्वर्गीय श्रीमती तेजी बच्चन के प्रति मेरा अगाध श्रद्धा से भी वे लोग वंचित रह जायेंगें जिन्हे इसे पहले पढ़ने का अवसर न मिला हो । यह कविता तथा कवि का सम्मान उस दिन (बच्चन संध्या) मै अपने साथ ले गया था, प्रियवर ऎश्वर्या के हाथ में यह दोनो कवितायें आपके लिये दी थीं ।

प्रणय प्रसंगिनी बन कर
जब से तेजी आईं जीवन में
शोक हर्ष से हार गया तब
फिर कविता उपजी थी मन में
दुविधायें सुविधायें बनकर
चहक उठी थी आंगन में
अमित-अजित की आभा से
कवि पिता रुप में थे जन्में
तेजी ने जब सहयोग दिया
कैम्ब्रिज जाकर तब शोध किया
राक्षस कितने ही आये पर
तुमने उनका प्रतिरोध किया
इस जीवन को ही युद्ध मान
जीना फिर से प्रारंभ किया
फिर इलाहाबाद को छोड दिया
अब दिल्ली को प्रस्थान किया
प्रणय प्रसंगिनी बन कर
जब से तेजी आईं जीवन में
कवि बच्चन ने एक बार फिर
कविता का था वरण किया ।

अभय भारती(य), 24 जनवरी 2009 08.27 प्रातः

कुछ एक कवितायें मैने अभय भारती(य) के नाम से लिखी थीं यह उनमें से एक है ।

Saturday, December 12, 2009

Monday, December 7, 2009

बच्चन संध्या – 4 डॉक्टर पुष्पा भारती - प्रथम खंड

बच्चन संध्या – 4 डॉक्टर पुष्पा भारती - प्रथम खंड

डॉक्टर धर्मवीर भारती जी की पत्नी को अगर डॉक्टर बच्चन के जीवन की चलती- फिरती एनसाइक्लोपीडिया की संज्ञा दी जाये तब इसे अतिश्योक्ति समझना सर्वथा अनुचित ही कहा जा सकता है । उन्होने कई बातें बच्चन संध्या के अवसर पर बताईं, कुछ एक मुझे पहले से ह ज्ञात थी, बहुत सी बातें पहले-पहल सुनने में आईं ।

मसलन वे स्वयं डॉक्टर बच्चन बन कर कवि-सम्मेलनों में भी जाती थीं । जब उन्होने बताया कि कैसे वे चिमटे को गरम करके अपने सीधे बालों को घुंघराले बनाने का प्रयास करतीं थी, सुनकर बरबस हंसी ही आ गई थी । एक अन्य किस्सा उन्होने अपने सूट सिलवाने के बारे में जब बताया तब मुझे शायद इसलिये भी रुचिकर लगा हो कयोंकि उस दिन सुबह ही मैने भाईसाहब के सूट के बारे में टिप्पणी करते हुये यहां ब्लाग पर लिखा था ।

पुष्पा जी बताती है जब उन्होने अपने घर वालों से अपने लिये सूट सिलाने की बात कही तो घर वालों ने लापरवाही दिखाई, लड़कियां भी कहीं सूट पहनती है क्या ? यहां प्रसंग अधूरा लग रहा है, मै यह बताना भूल गया कि डॉक्टर बच्चन अन्य कवियों से हटकर थे, जहां अधिकतर कवि कुर्ता-पजामा या धॊती-कुर्ता पहनते थे वहीं अपने बच्चन जी सूट-बूट पहनकर ही कविता पाठ करते थे । अब अगर मंच पर बच्चन जी बनकर जाना है तब लाजिमी सी बात है उनके जैसा हुलिया भी हो । खैर साहब, बात आई-गई हो गयी पर जब घर की सारी कार्निशें पुरस्कार इनामों से भरने लगीं तब मजबूरन घर वालों ने उनकी इस सूट की फर्माइश पर आपत्ति नही जताई, हां दर्जी से यह अवश्य कह दिया गया था कि भैया सूट जरा बड़ा ही बनाना जिससे लड़की कम से कम 3-4 साल उसे पहन सके ।

समय के अभाव में मैने पहले भी अध्यायों को खंडों में विभाजित किया था इसी कारण इस प्रसंग के साथ प्रथम खंड यहीं समाप्त करता हूं । अगले चरण में डॉक्टर बच्चन की मिस तेजी सुरी से मुलाकात का प्रसंग लेकर हम इस पथ पर आगे बढ़ेंगें ।

अभय शर्मा

Thursday, December 3, 2009

सोन मछरी

आदरणीय भाईसाहब
सादर चरण स्पर्श
पॉ के प्रीमियर के आपके अथक परिश्रम के बाद एक छोटी सी भेंट आपके लिये । आपके द्वारा प्रस्तुत आपके ही बाबूजी की लिखी एक लोकधुन पर आधारित यह कविता -


सोन मछरी

संत्यज्य मत्स्यरूपं सा दिव्यं रुपमवाप्य च – महाभारत । 163।66।
(स्त्री-पुरुषों के दो दल बनाकर सहगान के लियेः उत्तर प्रदेश की एक लोकधुन पर आधारित, जिसे ढिंढिया कहते हैं )

(स्त्री)

जाओ, लाओ, पिया, नदिया से सोन मछरी ।
पिया सोन मछरी, पिया, सोन मछरी ।
जाओ, लाओ, पिया, नदिया से सोन मछरी ।

उसकी हैं नीलम की आंखें,
हीरे-पन्ने की हैं पांखें,
वह मुख से उगलती है मोती की लरी ।
पिया, मोती की लरी; पिया, मोती की लरी ।

(पुरुष)

सीता ने सुवरन मृग मांगा,
उनका सुख लेकर वो भागा,
बस रह गई नयनों में आंसू की लरी ।

रानी, आंसू की लरी; रानी, आंसू की लरी ।
रानी, मत मांगो नदिया की सोन मछरी ।

(स्त्री)

जाओ, लाओ, पिया, नदिया से सोन मछरी ।
पिया सोन मछरी, पिया, सोन मछरी ।
जाओ, लाओ, पिया, नदिया से सोन मछरी ।

पिया डोंगी ले सिधारे,
मै खड़ी रही किनारे,
पिया लौटे लेके बगल में सोने की परी ।

पिया, सोने की परी नही नही सोन मछरी ।
पिया, सोन मछरी नही सोने की परी ।

(पुरुष)

मैने बंसी जल में डाली,
देखी होती बात निराली,
छूकर सोन मछरी हुई सोने की परी ।

रानी, सोने की परी, रानी, सोने की परी ।
छूकर सोन मछरी हुई सोने की परी ।

जाओ, लाओ, पिया, नदिया से सोन मछरी ।
पिया सोन मछरी, पिया, सोन मछरी ।
जाओ, लाओ, पिया, नदिया से सोन मछरी ।

(स्त्री)

पिया परी अपनाये,
हुये अपने पराये,
हाय मछरी जो मांगी, कैसी बुरी थी घरी
कैसी बुरी थी घरी, कैसी बुरी थी घरी
सोन मछरी जो मांगी, कैसी बुरी थी घरी ।

जो है कंचन का भरमाया,
उसने किसका प्यार निभाय,
मैने अपना बदला पाया,
मांगी मोती की लरी, पाई आंसू की लरी ।

पिया आंसू की लरी, पिया, आंसू की लरी ।
मांगी मोती की लरी, पाई आंसू की लरी ।

जाओ, लाओ, पिया, नदिया से सोन मछरी ।
पिया सोन मछरी, पिया, सोन मछरी ।
जाओ, लाओ, पिया, नदिया से सोन मछरी ।

अभय शर्मा
पुनश्चः यह लोकधुन पर आधारित कविता जो डॉक्टर हरिवंश राय बच्चन जी ने लिखी है बहुत सहज और बहुत ही मधुर निराले अंदाज़ में उनके अपने ही सुपुत्र श्रीमान अमिताभ बच्चन ने 28 नवंबर 2009 के दिन उस अवसर पर सुनाई जब बारतीय विद्या भवन के प्रांगण में कविवर बच्चन जी की 102वीं वर्षगांठ मनाने के लिये उनके पूरे परिवार के साथ मुझे भी उन्हे सुनने का अवसर मिला । यह मेरा परम सौभाग्य नही था तो क्या था कि मै महान कवि के उनके मरणोपरंत भी दर्शन कर सका, भाईसाहब ने उन्हे उस क्षण के लिये जीवंत ही तो कर दिया था । यह मेरा परम प्रिय भाईसाहब अमिताभ बच्चन को इतने निकट से देखने का पहला ही अवसर था, नही मिल पाने का विशेष गम मुझे नही, उनके चरण स्पर्श करने से वंचित रह गया यह बात हमेशा ही मेरे दिमाग को परेशान करती रहेगी । खैर, मन का हो तो अच्छा है, मन का ना हो तो और भी अच्छा है ।

Wednesday, December 2, 2009

mele me khoi gujariya - Bachchan Sandhya

Respected Brother
Pranaam again!

I am back here with the words of the mele mein khoi gujariya for the benefit of the EF I wish Manish Parmar, Srinivas, Aishwarya, Kashmira Di, Zainab, Angela, AZ, Tumpa bon, Carla, Sis Rose, Rajiv G. Anil Sharma, Anand Khare, Archana, Manoj, Vijaya, Naresh Kapoor, Ravi Malhotra, Kishore Bhatt, Rupam, Vikas (Kuwait), Skh USA, Devkishen, Sudhir, Rochelle, Renate, Anu, Preeti, Satinder, Mondira, Mousumi, Sharmila, Bharati Sharma (Millie), Reshmi Philip, Reeham, Rasha Zayed, Amitabh Ziibbu, Dr. Shashi Mohan Sharma and many many others See I forgot about three very very important people Jasmine Jaywant, Sanjith Hanuman and Shanakar Narayan.. there may be many others whom I would have missed unintentionaly.. I can only be apologetic to such people.. eyt I dedicate this lokgeet the second one that you performed on the stage when celebrating the 102nd birthday of Dr. Harivansh Rai Bachchan..

Here it goes.. it ws easier to type so I decided to do it before.. the commentary in Hindi shall be made available as and when I get some more time.. it is a long long way to go to complete the Bachchan Sandhya.. what has been served so far is probably less than half of what I have already written with pen on an old diary..

मेले में खोई गुजरिया
जिसे मिले मुझसे मिलाये ।

उसका मुखड़ा
चांद का टुकड़ा,

कोई नज़र न लगाये
जिसे मिले मुझसे मिलाये ।

मेले में खोई गुजरिया
जिसे मिले मुझसे मिलाये ।

खोये से नैना,
तोतरे बैना,

कोई न उसको चिढ़ाये
जिसे मिले मुझसे मिलाये ।

मेले में खोई गुजरिया
जिसे मिले मुझसे मिलाये ।

मटमैली सारी,
बिना किनारी,

कॊई न उसको लजाये
जिसे मिले मुझसे मिलाये ।

मेले में खोई गुजरिया
जिसे मिले मुझसे मिलाये ।

तन की गोली,
मन की भोली,

कोई न उसे बहकाये
जिसे मिले मुझसे मिलाये
मेले में खोई गुजरिया
जिसे मिले मुझसे मिलाये ।

दूंगी चवन्नी
जो मेरी मुन्नी

को लाये कनिया उठाये
जिसे मिले मुझसे मिलाये

मेले में खोई गुजरिया
जिसे मिले मुझसे मिलाये ।

अभय शर्मा
3 दिसंबर 2009 9.40
प्रातः
Post Script
I had still forgot some important names
Syed Kabeeruddin, Zhenya Sannikova, Elena Seredkina, Subhash Kaura, Lyudmila, Mondira, Sr. Anshu, Priyanaka Verma, Anu Verma, Ekta Bharadia, Deepti shrikant Pote, Lakshmi Jag come immediately to the mind.. pahale dimaag mein kyo nahi aaye..
Post Post Script:
I take this opportunity to thank the following who had made the evening at Bharatiya Vidya Bhavan a really memorable experience -
You Sir- The Amitabh Bachchan of Cinema World, Jaya Bachchan nee Jaya Bhaduri, Dr. Pushpa Bharti, Abhsihek-Aishwarya, Shweta-Nikhil, Namrata, Nayana, brother Ajitabh, Amar Singh ji, Ashutosh Rana and the invited guests - Sir Om Puri, Govind Nihalani, Pandit Shiv Kumar Sharma, Rakeysh Omprakash Mehra, Sachin Khedekar ( I could not recollect your name at the green room, sorry, boss!), Ayz memon, Ila Arun and Piyush Pandey ( had not known it was you, I know you from college4 days when you were keeping the wickets for St. Stephens err. you were also the captain for sometime.. were you.. I am from across the Road Hindu college, Sunil Valson days), it is all right there were many others whom I thought I should have interacted with but could not.. and here too I missed an important man.. Prasoon Joshi.. I had a good chat and paid respect to him along with a copy of my poetry..
Aishwarya has the world's best smile.. or so I thought when she smiled at me.. Abhishek don't envy or flex your muscles buddy.. rishte mei tumhaare chacha lagate hai.. ab biibi ke gulaam ho bhi to kya pharak padata hai.. 17 saal ho gaye hain sunate sunate..
Love to everyone whom I might have met and still missed again unintentionally.. I can understand brother how difficult it must be to make an invitation list and give adequate attention to the invitees.. I can really understand it very well.. tha I am not able to do it for few handful people.. you are handling 1600 top invitees.. best of luck for Paa.. may Abhishek become a real Paa soon.. don't mind Abybaby.. expectations.. after all..
See I had completely forgot the hosts Bharatiya Vidya Bhavan who must have taken months of preparations to bringforth such a great event.. and Dr. Bachchan without whose birthday and beautiful poetry that he composed the evening would have never had seen the light of the day.. and Teji Bachchan ji for being poetry in his life..

बच्चन संध्या -३ द्वितोय खंड

बच्चन संध्या भाग – 3 द्वितीय खंड

जया जी की काव्यांजलि के बाद पुष्पा जी ने उस कविता रूपी पुष्प को आमिताभ बच्चन से प्रस्तुत करने का आग्रह किया जिसका शब्द-शब्द भाईसाहब के जीवन में इतना गहरा उतरता है जितना शायद ही कविवर बच्चन जी ने कभी इस कविता को लिखते समय महसूस किया होगा – मै पीछे से पुकार उठा ‘जीवन की आपाधापी में’, शायद कुछ लोगों को मेरा यह व्यवहार अनुचित भी लगा हो, मै कई बार टिप्पणी करने से अपने आपको रोक नही सका, ‘जीवन की आपाधापी में’ अपने आप में एक सशक्त कविता है उसे किस प्रकार से पढ़ा जाना है शायद डाक्टर बच्चन ने कभी भाई अमिताभ को बताया होगा जब भावों के साथ, शब्दों के अपेक्षित उतार-चढ़ाव, ठहराव के साथ भाईसाहब ने जब कविता की प्रमुख पंक्तियां पढ़कर सुनाई तो वाकई मज़ा आ गया साथ ही मुंह से हठात ही निकल गया ‘दैट्स इट’ । अगर अपने इस व्यवहार के कारण अन्य लोगों के आनंद में बाधा पहुंचाई हो, या आपके कविता पाठ में किसी भी प्रकार बाधित किया हो तो मैं गुनहगार हूं, पर हां मै सीमा से बाहर नही गया इस बात का ध्यान सदा ही रखा –
मैं कितना ही भूलूं भटकूं या भरमाउं ..
..
कुछ देर कहीं पर बैठ
कभी यह सोच सकूं
जो किया कहा माना
उसमें क्या बुरा भला

यह कविता अभी कुछ ही समय पहले तथा कुछ दिन पहले भी ब्लाग पर शेयर करी थी, मेरे अपने अभयहरिवंश ब्लाग पर भी पूर्ण कविता उपलब्ध है ।

तत्पश्चात पुष्पा जी ने बताया कैसे श्रीमती तेजी बच्चन भी डाक्टर बच्चन के साथ कविता पाठ में सहयोग देती थीं । ऎसी ही एक सुंदर रचना को उन्होने अमिताभ को जया जी के साथ सुनाने के लिये अनुग्रहीत किया –
अमिताभ–जयाः- तुम गा दो मेरा गान अमर हो जाये
(पूर्ण गीत मै आपको थोड़ी ही देर में उपलब्ध करवाता हूं )

जब दोनो एक साथ कविता कर रहे थे तब ऎसा लग रहा था मानो कल ही दोनो का विवाह हुआ हो, जया जी के चेहरे पर थोड़ी सी नव वधु की घबराहट झलक रही थी वह अकुलाहट जो छुपाये नही छिपती बरबस मुझे अभिमान फ़िल्म की याद आ गई जहां दोनो ने ही गायक कलाकार की भूमिकाओं में साथ-साथ कई गाने गाये थे – तेरे मेरे मिलन की यह रैना । भाईसाहब आत्मशक्ति के प्रतिमान स्वरूप सहज दिख रहे थे उनकी वाणी में जैसे सरस्वती ने वास कर रखा हो ।

इसके उपरांत पुत्र अमिताभ ने पिता कवि बच्चन के जीवन के कुछ एक ऎसे संस्मरण सुनाये जिन्हे सुनने के बाद कवि से भी उतना ही प्यार हो जान स्वाभाविक है जितना उनकी कविताओं से हमें सदैव ही रहा है ।

कवि बच्चन की आत्म-शक्ति का परिचय देते हुये अमित जी ने एक वाकया उपस्थित जन-समूह को सुनाया तो इसीमें उनके दृढ़ निश्चय, इच्छा-शक्ति के साथ-साथ उनके अंदर छिपे हुये कलाकार का भी परिचय मिल जाता है । किस्सा कुछ लम्बा है साथ ही रोचक भी इसे तृतीय खंड में रखने का निर्णय मेर नही मेरी पीठ का है, पीठ जबाव दे रही है ना मै कवि बच्चन जैसा आत्म-बल रखता हूं ना ही मेरे पास श्वेता की दी हुई सुखद कुर्सी है जिसका आपने आज सुबह फ़्यूज़ उड़ा दिया था । फिर भी जाने से पहले कोशिश करता हूं कि आपके लिये वह सहगान का मुखड़ा अवश्य ही उपलब्ध करा सकूं जिसका उपर वर्णन किया गया है –

तुम गा दो मेरा गन अमर हो जाए

(1)
मेरे वर्ण-वर्ण विश्रंखल,
चरण-चरण भरमाये,
गूंज-ग़ूजकर मिटने वाले
मैने गीत बनाये,
कूक हो गई हूक गगन की
कोकिल के कंठों पर,
तुम गा दो, मेरा गान अमर हो जाये ।

(2)
जब-जब जग ने कर फैलाये
मैने कोष लुटाया,
रंक हुआ मै निज निधि खोकर
जगती ने क्या पाया

भेंट न जिसमें मैं कुछ खोउं
पर तुम सब कुछ पाओ,
तुम ले लो, मेरा दान अमर हो जाये
तुम गा दो, मेरा गान अमर हो जाये ।
(3)
सुंदर और असुंदर जग में
मैने क्या न सराहा
इतनी ममतामय दुनिया में
मैं केवल अनचाहा;

देखूं अब किसकी रुकती है
आ मुझ पर अभिलाषा,
तुम रख लो, मेरा मान अमर हो जाये
तुम गा दो, मेरा गान अमर हो जाये ।

(4)
द्य्ख से जीवन बीता फिर भी
शेष अभी कुछ रहता,
जीवन की अंतिम घड़ियों में
भी तुमसे यह कहता,

सुख की एक सांस पर होता
है अमरत्व निछावर,
तुम छू दो, मेरा प्राण अमर हो जाये
तुम गा दो, मेरा गान अमर हो जाये ।
अभय शर्मा
2 दिसंबर 2009 11.00 (रात्रि प्रहर)








Tuesday, December 1, 2009

Bachchan Sandhya Part 3 - 1


बच्चन संध्या भाग – 3

जो बीत गई सो बात गई- कवि बच्चन कि अनन्यतम रचनाओं मे से एक है, कितने गहरे भाव के साथ लिखी इस कविता के लिये जब पुष्पा जी ने जया बच्चन को आमंत्रित किया तो पहले पहल तो मुझे लगा था कि क्या जया जी इतनी गंभीर कविता के साथ न्याय कर पायेंगी, अगर मैने वह प्रसंग़ जया जी तथा बाबूजी के बारे में ध्यान से सुना होता तो अवश्य ही मुझे याद रहता कि जया जी कितनी संवेदनशील है, मुझे इतना ही याद है कि शायद उस जिक्र से मंच पर भी उनकी आंखे भर आई थी –


यह कविता तो अभी कुछ ही दिनों पहले यहां लिखी थी – फिर भी जया जी की प्रस्तुति मेरी उम्मीद से कहीं बहुत ही अच्छी थी, हर कोई तो भाईसाहब की तरह कविता पाठ नही ही कर सकता फिर भी जया जी की काव्यांजलि काफ़ी सुंदर थी –

जो बीत गई सो बात गई ।

जीवन में एक सितारा था,
माना वो बेहद प्यारा था
वह डूब गया तो डूब गया
अंबर के आनन को देखो
...
पर बोलो टूटे तारों पर
कब अंबर शोक मनाता है
जो बीत गई सो बात गई ।

मुझे यह कहते हुए या बताते हुये विशेष हर्ष नही हो रहा है कि जया जी के बारे में इस प्रसंग को मैने शायद इसलिये ध्यान से नही सुना कि मेरा ध्यान भंग हो रहा था, मै देख रहा था कि भाईसाहव असल ज़िंदगी में भी कितने महान व्यक्तित्व के स्वामी हैं । वास्तव में कई क्षण तो मुझे इस बात का यकीन ही नही हो रहा था कि मै बच्चन संध्या में प्रवेश पा चुका हूं या अमिताभ बच्चन नामक महान कलाकार मेरे से 100-200 मीटर की दूरी पर ही विराजमान है । मै बीच बीच में कुछ कुछ अपने आप में खो सा जाता था । पुष्पा जी अक्सर मनुष्य के साथ अकस्मात क्षणों में कभी कभी ऎसा हो जाता है जब वह लगभग हक्का-बक्का रह जाता है, मुझे आशा है कि मेरी साफगोई से आप दोनो को परेशानी नही होनी चाहिये, जानबूझकर मैने ऎसा नह किया था । जया जी आपका कविता पाठ इतना सुंदर था कि उसने मेरे अमिताभ-मोह को भंग कर दिया था-


मदु मिट्टी के है बने हुये
मधुघट फूटा ही करते है
लघु जीवन लेकर आये है
प्याले टूटा ही करते हैं ।

यहां एक छोटी सी विश्लेषणा अवश्य ही जोड़ना चाहूंगा –
डाक्टर बच्चन को मिट्टी से बेहद प्यार था तभी शायद अपने बारे में उन्होने कहा होगा –

मिट्टी का तन, मस्ती का मन
क्षण भर जीवन, मेरा परिचय !

Abhaya Sharma


December 1/2 2009 12:10 AM