Sunday, December 20, 2009

Bachchan Sandhya Part IV -2

बच्चन संध्या चतुर्थ भाग - द्वितीय खंड
आदरणीय भाईसाहब,
सादर चरण स्पर्श,
इधर कई दिनों से बच्चन संध्या के विषय में कुछ नही लिख पा रहा था, अपने हस्तलिखित दस्तवेजों को भी टाईप कर आप सब तक पहुंचाने का समय नही मिल पा रहा था, वैसे, समय के अतिरिक्त हिंदी में टाईप करने में जिन कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है शायद वे भी इस का एक कारण हो सकती हैं ।

चलिये ब अधिक समय नष्ट करने के बजाय हम लोग बच्चन संध्या के चतुर्थ भाग की ओर अग्रसर हो लें तो बेहतर रहेगा । प्रथम खंड के अंत में मैने कहा था कि हम लोग डॉक्टर बच्चन के जीवन में किस तरह मिस तेजी सुरी का आगमन हुआ उसकी विशेष चर्चा रहेगी ।
डॉक्टर पुष्पा भारती जी ने बताया कि हुआ यूं था कि बच्चन जी अबोहर में कविता पाठ
के लिये गये हुये थे कि वहां बरेली कॉलेज के ज्ञान प्रकाश जौहरी जो उनके परम मित्रों में से थे उन्हे तुरंत बरेली पहुंचने को कहा, वहां पहुंचने पर किन परिस्थितियों में उनकी मिस तेजी सुरी से पहली मुलाकात हुई उसका वर्णन बहुत ही सुंदर शब्दों मे पुष्पा जी ने किया था । किस कदर खूबसूरत अंदाज में उन्होने उपस्थित लोगों को बताया कि पहली ही मुलाकात में दोनो एक दूसरे के हो गये थे, कासे बच्चन जी ने उन्हे कविता सुनाई थी किस तरह दोनो एक दूसरे के प्रति इतना आकृष्ट हुये कि कविवर कविता सुनाते जाते मिस सुरी अपनी अश्रु-धारा से उनके साथ साथ बहती चली गईं, फिटन की सवारी, लाल गुलाब की दो मालायें एक दूसरे के प्रति प्रतिबद्ध होने की घटना इत्यादि ने मुझे तो सम्मोहित सा कर दिया था । यह सब मेरा पढा हुआ था फिर भी ऎसा लगा कि जैसे कोई ऑई विटनैस बखूबी घटित घटनाक्रम का ज्यों का त्यों ब्यौरा दे रहा हो । मुझे तो यह प्रसंग इसलिये भी अधिक रुचिकर लगा हो कि कुछ समग्री इस विषय पर कभी मैने भी यहं अंग्रेजी में उपलब्ध कराई थी ।

एक अन्य किस्सा उन्होने सरोजिनी नायडू व नेहरू जी के विषय में भी यूं सुनाया था –
सरोजिनी नायडू ने घुंघराले बाल वाले नवयुवक का परिचय पंडित जवाहर लाल नेहरू से यह कहते हुये किया - ही इज़ द पॉयट, इससे पहले कि वे तेजी जी का परिचय कराने के लिये घूमती नेहरू जी तपाक से बोल पड़े – एंड शी इज़ द पॉयट्री , बड़े लोगों की बड़ी बातें नेहरू जी ने पहले ही समझ लिया था कि सरोजिनी नायडू क्या कहना चाहती थी । यह तो जग विदित है कि तेजी बच्चन जी की आगे चलकर पंडित जी की बेटी प्रियदर्शिनी से अच्छी खासी दोस्ती रही, अवश्य ही पंडित जी ने तेजी बच्चन में कविताई को देखने में कोई भूल नही की थी । कविवर बच्चन के जीवन में तेजी सुरी के आने से कविता एक बार फिर अपने मधुशाला वाले रूप में चहकने लगी थी । अगर आज मै आप लोगों को एक बार फिर से प्रणय-प्रसंगिनि वाली अपनी कविता नही सुनाउं, मेरा अपने प्रति अन्याय होगा साथ ही स्वर्गीय श्रीमती तेजी बच्चन के प्रति मेरा अगाध श्रद्धा से भी वे लोग वंचित रह जायेंगें जिन्हे इसे पहले पढ़ने का अवसर न मिला हो । यह कविता तथा कवि का सम्मान उस दिन (बच्चन संध्या) मै अपने साथ ले गया था, प्रियवर ऎश्वर्या के हाथ में यह दोनो कवितायें आपके लिये दी थीं ।

प्रणय प्रसंगिनी बन कर
जब से तेजी आईं जीवन में
शोक हर्ष से हार गया तब
फिर कविता उपजी थी मन में
दुविधायें सुविधायें बनकर
चहक उठी थी आंगन में
अमित-अजित की आभा से
कवि पिता रुप में थे जन्में
तेजी ने जब सहयोग दिया
कैम्ब्रिज जाकर तब शोध किया
राक्षस कितने ही आये पर
तुमने उनका प्रतिरोध किया
इस जीवन को ही युद्ध मान
जीना फिर से प्रारंभ किया
फिर इलाहाबाद को छोड दिया
अब दिल्ली को प्रस्थान किया
प्रणय प्रसंगिनी बन कर
जब से तेजी आईं जीवन में
कवि बच्चन ने एक बार फिर
कविता का था वरण किया ।

अभय भारती(य), 24 जनवरी 2009 08.27 प्रातः

कुछ एक कवितायें मैने अभय भारती(य) के नाम से लिखी थीं यह उनमें से एक है ।

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