Thursday, December 3, 2009

सोन मछरी

आदरणीय भाईसाहब
सादर चरण स्पर्श
पॉ के प्रीमियर के आपके अथक परिश्रम के बाद एक छोटी सी भेंट आपके लिये । आपके द्वारा प्रस्तुत आपके ही बाबूजी की लिखी एक लोकधुन पर आधारित यह कविता -


सोन मछरी

संत्यज्य मत्स्यरूपं सा दिव्यं रुपमवाप्य च – महाभारत । 163।66।
(स्त्री-पुरुषों के दो दल बनाकर सहगान के लियेः उत्तर प्रदेश की एक लोकधुन पर आधारित, जिसे ढिंढिया कहते हैं )

(स्त्री)

जाओ, लाओ, पिया, नदिया से सोन मछरी ।
पिया सोन मछरी, पिया, सोन मछरी ।
जाओ, लाओ, पिया, नदिया से सोन मछरी ।

उसकी हैं नीलम की आंखें,
हीरे-पन्ने की हैं पांखें,
वह मुख से उगलती है मोती की लरी ।
पिया, मोती की लरी; पिया, मोती की लरी ।

(पुरुष)

सीता ने सुवरन मृग मांगा,
उनका सुख लेकर वो भागा,
बस रह गई नयनों में आंसू की लरी ।

रानी, आंसू की लरी; रानी, आंसू की लरी ।
रानी, मत मांगो नदिया की सोन मछरी ।

(स्त्री)

जाओ, लाओ, पिया, नदिया से सोन मछरी ।
पिया सोन मछरी, पिया, सोन मछरी ।
जाओ, लाओ, पिया, नदिया से सोन मछरी ।

पिया डोंगी ले सिधारे,
मै खड़ी रही किनारे,
पिया लौटे लेके बगल में सोने की परी ।

पिया, सोने की परी नही नही सोन मछरी ।
पिया, सोन मछरी नही सोने की परी ।

(पुरुष)

मैने बंसी जल में डाली,
देखी होती बात निराली,
छूकर सोन मछरी हुई सोने की परी ।

रानी, सोने की परी, रानी, सोने की परी ।
छूकर सोन मछरी हुई सोने की परी ।

जाओ, लाओ, पिया, नदिया से सोन मछरी ।
पिया सोन मछरी, पिया, सोन मछरी ।
जाओ, लाओ, पिया, नदिया से सोन मछरी ।

(स्त्री)

पिया परी अपनाये,
हुये अपने पराये,
हाय मछरी जो मांगी, कैसी बुरी थी घरी
कैसी बुरी थी घरी, कैसी बुरी थी घरी
सोन मछरी जो मांगी, कैसी बुरी थी घरी ।

जो है कंचन का भरमाया,
उसने किसका प्यार निभाय,
मैने अपना बदला पाया,
मांगी मोती की लरी, पाई आंसू की लरी ।

पिया आंसू की लरी, पिया, आंसू की लरी ।
मांगी मोती की लरी, पाई आंसू की लरी ।

जाओ, लाओ, पिया, नदिया से सोन मछरी ।
पिया सोन मछरी, पिया, सोन मछरी ।
जाओ, लाओ, पिया, नदिया से सोन मछरी ।

अभय शर्मा
पुनश्चः यह लोकधुन पर आधारित कविता जो डॉक्टर हरिवंश राय बच्चन जी ने लिखी है बहुत सहज और बहुत ही मधुर निराले अंदाज़ में उनके अपने ही सुपुत्र श्रीमान अमिताभ बच्चन ने 28 नवंबर 2009 के दिन उस अवसर पर सुनाई जब बारतीय विद्या भवन के प्रांगण में कविवर बच्चन जी की 102वीं वर्षगांठ मनाने के लिये उनके पूरे परिवार के साथ मुझे भी उन्हे सुनने का अवसर मिला । यह मेरा परम सौभाग्य नही था तो क्या था कि मै महान कवि के उनके मरणोपरंत भी दर्शन कर सका, भाईसाहब ने उन्हे उस क्षण के लिये जीवंत ही तो कर दिया था । यह मेरा परम प्रिय भाईसाहब अमिताभ बच्चन को इतने निकट से देखने का पहला ही अवसर था, नही मिल पाने का विशेष गम मुझे नही, उनके चरण स्पर्श करने से वंचित रह गया यह बात हमेशा ही मेरे दिमाग को परेशान करती रहेगी । खैर, मन का हो तो अच्छा है, मन का ना हो तो और भी अच्छा है ।

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