Monday, November 30, 2009

Bachchan Sandhya Part-2 complete

The most respected brother of this universe 
Sadar Charan Sparsh and a very Good Morning 

I bow to thee.. I bow to touch your feet.. I bow to the performer par excellence in you.. I bow to Amitabh Bachchan the living legend of Hindi Cinema.. I bow to the unique presenter of Madhushala.. As I write these above lines I am not taken by any sort of sycophancy.. you brother truly deserve every iota of these bowful bounty that comes your way from someone who may not count as much.. 

 I have some handwritten pages in Hindi on the Bachchan Sandhya.. an account of the program where I met Dr. Bachchan after his death.. it is all right a meeting with him at any time was far more significant to me at any cost.. and I am happy that I paid heed to AZ to go their directly.. 

I am thankful to the consent that Aishwarya expressed on knowing me.. I thank Payal once again to make it possible to find the way to that most mesmerizing evening that I had spent with you..

 My only concern was that I could not touch your feet.. err.. the feet of Dr. Bachchan.. for you enacted that night a role of your father in the most memorable manner and reminisced his life that no book.. no movie.. no account in whatever format would never ever be able to achieve.. you deserve shat-shat pranaam sir.. you deserve to be patted for every presentation and discourse of that evening.. the best part was the caring you showered on the GenNext.. 

When you said at the beginning of their recitations that let me read the first poem so that they could gain some self-confidence.. brother.. I loved that gesture the most.. I wish I could take care of my only son Amrit is the same way.. to help him understand what a fatherly care and concern is all about.. I fail and I fail miserably.. I shall definitely make more efforts in those directions.. 

 Before I sig off for today I share with you the second part of Bachchan Sandhya which concerns Madhushala at the epicentre of the presentation.. Madhushala.. the immortal creation of Dr. Bachchan.. Madhushala.. which even after 75 years of its first rendition by him has lived beyond his mortal physical being.. Madhushala which offers lessons for each one fo us in every hour we live on this earth.. 

Madhushla which when recited by you gave ne much more pleasure than Sir Manna Dey did it some 30 to 40 years back.. Madhushala that embraces us in its foil like no other work of Hindi poetry could possibly achieve.. 

Madhushala by Dr. Harivansh Rai Bachchan has left an indelible mark on my mind and heart like none other.. He is as great as Munshi Premchand.. He is as great as Shakedpear.. He has same height of achievement as Kalidas.. He has crossed every border and frontier in his beautiful creation.. and I am sure world is going to be richer with this new coffeetable edition in Hindi and English..

No, no, brother, you don't have to gift me this book.. I shall buy it when I have means and then I would come to meet you for the first time to get an autograph.. your autographs as I can not possibly go to heavens to take Dr. Bachchan's.. lol.. 

 बच्चन संध्या – भाग 2 

इससे पहले कि हम लोग इस सफर में आगे बढ़ें मै पायल का शुक्रिया अदा करना चाहूंगा जिसके सहयोग के बिना शायद मै बच्चन संध्या से प्यासा ही घर को लौट जाता । और चलिये ‘अकेलेपन का बल पहचान’ के बाद भाईसाहब ने एक अन्य रचना प्रस्तुत की जिसका मुखड़ा था – मै सुख पर सुखमा पर रीझा इसकी मुझको लाज नही है .. 

 पुष्पा जी ने बड़े ही सुंदर ढंग से मधुशाला की भूमिका बांधते हुये कहा कि बच्चन जी ने वैसे तो कई एक कवितायें लिखी है पर अमिताभ जो स्वयं उनकी एक श्रेष्ठतम रचना है (इसमें तो संदेह की कोई गुजाइश ही नही है ) उन्हीके द्वारा प्रस्तुत है बच्चन जी की सर्वश्रेष्ठ रचना मधुशाला । एक छोटे से परिचय संगीतकार कल्याण जी के पुत्र विजू शाह के साथ जब अमिताभ बच्चन ने मधुशाला पढना प्रारंभ किया कोई भी मंत्रमुग्ध हुये बिना नही रह सकता था करतल तथा चुटकी के साथ मद्धिम स्वर में मैने भी उनका साथ निभाया । 

अपने युग में सबको अनुपम ज्ञात हुई अपनी हाला .. (125) इस छंद के साथ मधुशाला का श्रीगणेश करते हुये अमिताभ बच्चन जी ने अगला छंद वही पढ़ा जिसको स्वयं अपनी आवाज में बच्चन जी ने मधुशाला (मन्ना डे) के प्रारंभ में रिकार्ड किया था मदिरालय जाने को घर से चलता है पीने वाला (6) ... 

 इससे पहले मैं यह बताना तो आपको भूल ही गया कि किस प्रकार पुष्पा जी ने अपनी प्रस्तावना में मधुशाला के प्रति जो कुछ कहा वह अत्यंत प्रशंसनीय था, जैसे जब लोगों ने बच्चन जी की मधुशाला के बारे में गांधी जी से यह कह कर शिकायत की कि कैसे बच्चन की मधुशाला शराब के प्रचार का काम कर रही है तब कैसे यथार्थ से परिचित होने पर उन्होने लोगों को समझाया कि मधुशाला शराब की बिक्री बढ़ाने के लिये नही बल्कि जीवन के मूल्यों को ध्यान में रखकर लिखी गई है, वस्तव में सत्य ही है कि मधुशाला में मदिरालय, मदिरा, प्याला, साकी, हाला मात्र निमित्त है कवि के मन की बात तो जीवन के प्रति अभिव्यक्तियों से बेजोड़ रूप से जुड़ी हुई है । 

अमिताभ बच्चन ने अपने बाबूजी कविवर बच्चन के परिचय में उनके अथक परिश्रमी होने की बात भी कही- खासकर अपने लेखन के प्रति उनकी लगन को देखते हुये उन्होने एक किस्सा सुनाया जिससे अपने लेखन के प्रति बच्चन जी की साधना का सही प्रमाण मिलता है। उन्होने बताया कि कैसे बाबूजी जब लिखने के लिये बैठते थे तब दरवाजे पर एक पट्टी टांग देते है कि उन्हे किसी भी हालत में डिस्टर्ब ना किया जाये और घंटों लिखते रहते ।

एक विशेष प्रसंग में उन्होने बताया कि एक दिन जब अचानक किसी कारण वश वे उनके कमरे में गये तब देखा कि बाबूजी अपने बांये हाथ की गरम पानी के बर्तन में रखकर सिकाई कर रहे थे । मैने उनसे पूछा कि वे अपने बांये हाथ की सिकाई क्यों कर रहे है तब डाक्टर बच्चन ने कहा कि लिखते लिखते मेरा हाथ थक गया था आराम के लिये इसे गरम पानी में डाल दिया है । अमित जी ने उनसे पूछा बाबूजी आप तो दांये हाथ से लिखते हो फिर बांये हाथ की सिकाई का क्या मतलब । तब उन्होने समझाया कि लिखता तो मै दांये हाथ से ही हूं पर अपनी इच्छा-शक्ति से उस दर्द को मैने अपने बायें हाथ में ट्रांस्फर कर दिया है अब मै बेधड़क होकर बड़े आराम से अपने दायें हाथ से लिख सकता हूं और बांये हाथ की सिकाई भी चल रही है । 

अमित जी ने यह भी बताया कि कैसे जब वे बैठ कर लिख रहे होते और थक जाते तो खड़े होकर लिखना शुरू कर देते फिर खड़े-खड़े थक जाते तो फिर से बैठ कर लिखना शुरू कर देते, भई क्या बात है कवि बच्चन की, कैम्ब्रिज में थीसिस के साथ साथ कविता लेखन का सिलसिला भी चलता रहा, ऎसे कठोर परिश्रमी थे हमारे कविवर हरिवंशराय बच्चन जी। 

 इस के बाद जिन छंदो को अमिताभ बच्चन ने प्रस्तुत किया उनका छोटा सा विवरण देते हुये हम लोग आगे बढ़ते है, जिन पाठकों को अधिक जानकारी लेनी हो वे चार भागों में लिखी उनकी आत्मकथा में विस्तार से उनके बारे में जान सकते है – 

मदिरालय जाने को घर से .. के बाद मधुशाला की प्रमुख पक्तियां भाई आमिताभ ने पढ़ कर सुनाईं वे ये रहीं - 
 एक बरस में एक बार ही जलती होली की ज्वाला 
एक बार ही लगती बाजी जलती दीपों की माला .. (26) 

संप्रदायिक तनाव के विरुद्ध मधुशाला की यह पंक्तियां तो मुझे विशेष रूप से प्रिय है हो सकता है शायद यहीं से मैने उनके साथ साथ कुछ एक पंक्तियों में अपने सुर के तार भी खोल दिये हों ठीक से याद नही । उस समय भाईसाहब की आवाज चारों दिशाओं में व्याप्त थी मैं भी उसमें अगर बह गया तो क्या हुआ –
 मुसलमान औ हिन्दू है दो एक मगर उनका प्याला .. (50) 

 कवि बच्चन ने जीवन मरण का नितांत संजीदगी के साथ हवला देते हुये जो अभूतपूर्व पंक्तिया कलमबद्ध की है उन्हे सुनाते हुये भाईसाहब मधुशाला मे डूबते चले गये, आनंद की उस चरम सीमा का बखान या बयान कर पाना शब्दों के वश के बाहर की बात है ।

यह बात मेरे साथ उपस्थित भारतीय विद्या भवन के परिसर में जमा लोग ही समझ सकते है – 
 यम आयेगा साकी बनकर साथ लिये काली हाला .. (80) 

 मेरे अधरों पर हो अंतिम वस्तु न तुलसी-दल प्याला .. 
(82) 

 या मेरे शव पर वह रोये हो जिसके आंसू में हाला .. (83) 
और चिता पर जाय उंडेला पात्र ना घृत का, पर प्याला .. 
पीने वालों को बुलवा कर खुलवा देना मधुशाला (84) 

इस द्वितीय भाग को मै यहि समाप्त करता हूं, अगला अंक हम जया जी द्वारा अर्पित काव्यांजलि के साथ प्रारंभ करेंगें । 
टिप्पणी – मधुशाला की जिन पक्तियों को भाईसाहब अर्थात अमिताभ बच्चन ने जिस तन्मयता के साथ प्रस्त्तुत किया है उनके बोल इस प्रकार थे –
 (125) 
अपने युग में सबको अनुपम ज्ञात हुई अपनी हाला, 
अपने युग में सबको अदभुत ज्ञात हुआ अपना प्याला,
फिर भी वृद्धों से जब पूछा एक यही उत्तर पाया - 
अब न रहे वे पीनेवाले, अब न रही वह मधुशाला!

 (6) 
मदिरालय जाने को घर से चलता है पीनेवला, 
'किस पथ से जाऊँ?' असमंजस में है वह भोलाभाला, 
अलग-अलग पथ बतलाते सब पर मैं यह बतलाता हूँ - 
'राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला।'

 (26)
एक बरस में, एक बार ही जगती होली की ज्वाला, 
एक बार ही लगती बाज़ी, जलती दीपों की माला, 
दुनियावालों, किन्तु, किसी दिन आ मदिरालय में देखो, 
दिन को होली, रात दिवाली, रोज़ मनाती मधुशाला

 (50) 
मुसलमान औ' हिन्दू है दो, एक, मगर, उनका प्याला, 
एक, मगर, उनका मदिरालय, एक, मगर, उनकी हाला, 
दोनों रहते एक न जब तक मस्जिद मन्दिर में जाते, 
बैर बढ़ाते मस्जिद मन्दिर मेल कराती मधुशाला!

(80) 
यम आयेगा साकी बनकर साथ लिए काली हाला, 
पी न होश में फिर आएगा सुरा-विसुध यह मतवाला, 
यह अंतिम बेहोशी, अंतिम साकी, अंतिम प्याला है, 
पथिक, प्यार से पीना इसको फिर न मिलेगी मधुशाला

(82)
मेरे अधरों पर हो अंतिम वस्तु न तुलसीदल प्याला 
मेरी जिव्हा पर हो अंतिम वस्तु न गंगाजल हाला,
मेरे शव के पीछे चलने वालों याद इसे रखना 
राम नाम है सत्य न कहना, कहना सच्ची मधुशाला

(83) 
मेरे शव पर वह रोये, हो जिसके आंसू में हाला 
आह भरे वो, जो हो सुरभित मदिरा पी कर मतवाला, 
दे मुझको वो कान्धा जिनके पग मद डगमग होते हों 
और जलूं उस ठौर जहां पर कभी रही हो मधुशाला

 (84) 
और चिता पर जाये उंडेला पात्र न घृत का, पर प्याला 
कंठ बंधे अंगूर लता में मध्य न जल हो, पर हाला, 
प्राण प्रिये यदि श्राद्ध करो तुम मेरा तो ऐसे करना 
पीने वालों को बुलवा कऱ खुलवा देना मधुशाला

अभय शर्मा 30 नवंबर 2009, 1 दिसंबर 2009 1.10 रात्रि प्रहर

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