बच्चन संध्या – भाग 2
इससे पहले कि हम लोग इस सफर में आगे बढ़ें मै पायल का शुक्रिया अदा करना चाहूंगा जिसके सहयोग के बिना शायद मै बच्चन संध्या से प्यासा ही घर को लौट जाता ।
चलिये ‘अकेलेपन का बल पह्चान’ के बाद भाईसाहब ने एक अन्य रचना प्रस्तुत की जिसका मुखड़ा था –
मै सुख पर सुखमा पर रीझा
इसकी मुझको लाज नही है ..
पुष्पा जी ने बड़े ही सुंदर ढंग से मधुशाला की भूमिका बांधते हुये कहा कि बच्चन जी ने वैसे तो कई एक कवितायें लिखी है पर अमिताभ जो स्वयं उनकी एक श्रेष्ठतम रचना है (इसमें तो संदेह की कोई गुजाइश ही नही है ) उन्हीके द्वारा प्रस्तुत है बच्चन जी की सर्वश्रेष्ठ रचना मधुशाला । एक छोटे से परिचय संगीतकार कल्याण जी के पुत्र विजू शाह के साथ जब अमिताभ बच्चन ने मधुशाला पढना प्रारंभ किया कोई भी मंत्रमुग्ध हुये बिना नही रह सकता था मैने भी संगीत और स्वर के साथ उनका साथ निभाया ।
अपने युग में सबको अनुपम ज्ञात हुई अपनी हाला (125) .. के इस छंद के साथ मधुशाला का श्रीगणेश करते हुये अमिताभ बच्चन जी ने अगला छंद वही पढ़ा जिसको स्वयं अपनी आवाज में बच्चन जी ने मधुशाला (मन्ना डे) के प्रारंभ में रिकार्ड किया था
मदिरालय जाने को घर से चलता है पीने वाला (6) ...
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