Sunday, January 24, 2010

युग-पंकः युग-ताप



युग-पंकः युग-ताप

दूध-सी कर्पूर-चंदन चांदनी में
भी नहाकर, भीगकर
मैं नहीं निर्मल, नहीं शीतल
हो सकूंगा,
क्योंकि मेरा तन-बसन
युग-पंक से लिथड़ा-सना है
और मेरी आत्मा युग-ताप से झुलसी हुई है;
नही मेरी ही तुम्हारी, औ’ तुम्हारी और सबकी ।
वस्त्र सबके दाग-धब्बे से भरे हैं,
देह सबकी कीच-कांदो में लिसी, लिपटी, लपेटी ।

कहां है वे संत
जिनके दिव्य दृग
सप्तावरण को भेद आए देख-
करूणासिंधु के नव नील नीरज लोचनों से
ज्योति निर्झर बह रहा है,
बैठकर दिक्काल
दृढ़ विश्वास की अविचल शिला पर
स्नान करते जा रहे हैं
और उनका कलुष-कल्मष
पाप-ताप-‘ भिशाप घुलता जा रहा है ।

कहां है वे कवि
मदिर- दृग, मधुर कंठी
और उनकी कल्पना-संजात
प्रेयसियां, पिटारी जादुओं की,
हास में जिनके नहाती है जुन्हाई,
जो कि अपने बाहुओं से घेर
जाड़व के ह्रदय का ताप हरतीं,
और अपने चमत्कारी आंचलों से
पोंछ जीवन कालिमा को
लालिमा में बदलतीं,
छलती समय को ।
आज उनकी मुझे, तुमको,
और सबको है जरूरत ।
कहां है वे संत
वे कवि है कहां पर ?-
नहीं उत्तर ।

वायवी सब कल्पनायें-भावनायें
आज युग के सत्य से ले टक्करें
गायब हुई हैं ।
कुछ नही उपयोग उनका ।
था कभी? संदेह मुझको ।
किंतु आत्म-प्रवंचना जो कभी संभव थी
नही अब रह गई है ।
तो फंसा युग-पंक में मानव रहेगा ?
तो जला युग-ताप में मानव करेगा ?
नहीं ।
लेकिन, स्नान करना उसे होगा
आंसुओं से – पर नही असमर्थ, निर्बल और कायर,
सबल पश्चाताप के उन आंसुओं से,
जो कलंकों का विगत इतिहास धोते ।
स्वेद से – पर नहीं दासों के खरीदे और बेचे, -
खुद बहाये, मृत्तिका जिससे कि अपना ऋण चुकाये ।
रक्त से- पर नहीं अपने या पराये
उसी पावन रक्त से
जिसको कि ईसा और गांधी की
हथेली और छाती ने बहाये ।

- हरिवंश राय बच्चन ( मेरी श्रेष्ठ कवितायें – पृष्ठ 394-395)

आदरणीय भाईसाहब,
सादर चरण स्पर्श
यह कविता अचानक मेरी आंखों के सामने बरबस आ गई- यहां प्रस्तुत करने से अपने आपको रोक नही सका, धृष्ठता के लिए क्षमा-प्रार्थी हूं, आप मुझ पर मुकदमा न दायर कर दें, मै अपना बचाब नही कर रहा, आपकी ही लेखनी से जो कुछ लिखा गया उसमें इसी कविता का कुछ-कुछ रूप देखा सो आपके लिये यहां प्रस्तुत किये बिना नही रह सका ।

आपका अनुज
अभय शर्मा
25 जनवरी 2010

पुनश्चः शायद मेरी प्रातःकालीन कविता कवि बच्चन की इस कविता का एक लघु रूप थी इसीलिये उनकी आत्मा ने मेरा पथ-प्रदर्शन कर इस कविता को आप सब तक पहुंचाने का आशय बना दिया हो ।

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