Thursday, November 26, 2009

Janm din kI shubh Kaamanayen

जीवन की आपाधापी में कब वक़्त मिला
कुछ देर कहीं पर बैठ कभी यह सोच सकूँ
जो किया, कहा, माना उसमें क्या बुरा भला।
जिस दिन मेरी चेतना जगी मैंने देखा
मैं खड़ा हुआ हूँ इस दुनिया के मेले में,
हर एक यहाँ पर एक भुलाने में भुला
हर एक लगा है अपनी अपनी दे-ले में
कुछ देर रहा हक्का-बक्का, भौचक्का-सा,
आ गया कहाँ, क्या करूँ यहाँ, जाऊँ किस जा?
फिर एक तरफ से आया ही तो धक्का- सा
मैंने भी बहना शुरू किया उस रेले में,
क्या बाहर की ठेला-पेली ही कुछ कम थी,
जो भीतर भी भावों का ऊहापोह मचा,जो किया,
उसी को करने की मजबूरी थी,जो कहा,
वही मन के अंदर से उबल चला,

जीवन की आपाधापी में कब वक़्त मिला
कुछ देर कहीं पर बैठ कभी यह सोच सकूँ
जो किया, कहा, माना उसमें क्या बुरा भला।

मेला जितना भड़कीला रंग-रंगीला था,
मानस के अन्दर उतनी ही कमज़ोरी थी,
जितना ज़्यादा संचित करने की ख़्वाहिश थी,
उतनी ही छोटी अपने कर की झोरी थी,
जितनी ही बिरमे रहने की थी अभिलाषा,
उतना ही रेले तेज ढकेले जाते थे,
क्रय-विक्रय तो ठण्ढे दिल से हो सकता है
,यह तो भागा-भागी की छीना-छोरी थी;
अब मुझसे पूछा जाता है क्या बतलाऊं
क्या मान अकिंचन बिखराता पथ पर आया,
वह कौन रतन अनमोल मिला ऐसा मुझको,
जिस पर अपना मन प्राण निछावर कर आया,
यह थी तकदीरी बात मुझे गुण दोष न दो
जिसको समझा था सोना, वह मिट्टी निकली,
जिसको समझा था आँसू, वह मोती निकला।

जीवन की आपाधापी में कब वक़्त मिला
कुछ देर कहीं पर बैठ कभी यह सोच सकूँ jo
जो किया, कहा, माना उसमें क्या बुरा भला।

मैं कितना ही भूलूँ, भटकूँ या भरमाऊँ,
है एक कहीं मंज़िल जो मुझे बुलाती है,
कितने ही मेरे पाँव पड़े ऊँचे-नीचे,
प्रतिपल वह मेरे पास चली ही आती है,
मुझ पर विधि का आभार बहुत-सी बातों का।

पर मैं कृतज्ञ उसका इस पर सबसे ज़्यादा
नभ ओले बरसाए, धरती शोले उगले,
अनवरत समय की चक्की चलती जाती है,
मैं जहाँ खड़ा था कल उस थल पर आज नहीं,
कल इसी जगह पर पाना मुझको मुश्किल है,
ले मापदंड जिसको परिवर्तित कर देती
केवल छूकर ही देश-काल की सीमायें
जग दे मुझपर फैसला उसे जैसा भाये
लेकिन मैं तो बेरोक सफ़र में जीवन के
इस एक और पहलू से होकर निकल चला।

जीवन की आपाधापी में कब वक़्त मिला
कुछ देर कहीं पर बैठ कभी यह सोच सकूँ
जो किया, कहा, माना उसमें क्या बुरा भला।

Dr. Harivansh Rai Bachchan

Respected Dr. Bachchan
Sadar Charan Sparsh

I wanted to wish you a happy birthday Sir, Many Happy returns of the day.. To be frank and honest with you I thought I should have talked with you in Hindi.. then I realised it does not matter.. it does not really matter as you were a PhD. on Yeats and in English Literature.. does it really मatter.. I mean does te language really matter when one has to express.. sometimes just the silence is much more communicative than the language or the words we speak..

I know last year it was one of those acts of terror that had shook Mumbai like never before.. that we could not really be in a wishing mood the next morning.. this year brother Amitabh has organised a Bachchan Sandhya at Bhavan's auditorium.. I am unable to e part of it.. jisake naseeb mein jitana likha hai use na usase jyada na hi usase kum , nahi mil sakata..

I know this letter may never reach you as it does not carry any postal address or even an email id.. it is all right.

मन का हो तो अच्छा है
न हो तो और भी अच्छा है ।

चलिये आपसे कुछ और बात करने से पहले मैं यह बता देता हूं कि आज मन में कोई दुविधा नही है, मैं इस बात से नाहक ही परेशान था कि आपसे कभी मिल नही सका जहां मन मिले हों वहां तन का मिलना क्या कुछ मायने रखता है । इस बात का मुझे संतोष है कि मै अपनी भावनाओं को कम से कम व्यक्त तो कर सकता हूं इस पर तो कोई पाबंदी नही है, किसी किस्म का पहरा नही है, किसी टिकट या पास की भी कोई आवश्यकता नही है फिर मै अपने मन की बात क्यों न कहूं ।

आप जिस लोक में आज निवास करते हैं वहां के बारे में मुझे अधिक सूचना या जानकारी नही है फिर भी कहीं आस-पास ही श्रीमती तेजी बच्चन का भी निवास स्थल होगा इस बात में संशय नही है, आप लोग एक दूसरे से कभी-कभी मिलते है या नही । किस तरह का जीवन रहता है वहां, लेखन सामग्री इत्यादि उपलब्ध रहती हैं या नही और कविताई कैसी चल रही है, मैं तो यही चाहता हूं कि आप अपनी कविताओं से उस लोक में भी सभी को आनंद प्रदान करते रहें । मातामयी तेजी जी को भी अगर संभव हो तो मेरा प्रणाम अवश्य ही पहुंचा दीजियेगा ।

आपका एक प्रशंसक
धरती वासी - अभय शर्मा

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