Sunday, November 29, 2009

Bachchan Sandhya part-1

आदरणीय भाईसाहब
सादर चरण स्पर्श
कुछ समय मुझे लगा है यहां बच्चन संध्या के बारे में कुछ अधिक बताने में, अभी सिर्फ़ भूमिका ही लिख पाया हूं, वास्तव में बहुत कुछ अभी भी लिखा जाना बाकी है - प्रयास मेरा यही रहेगा कि मै हिंदी के महान कवि की 102 वीं वर्षगांठ का विवरण हिंदी में ही कर सकूं -
28 नवंबर 2009
एक शाम अमिताभ के साथ – मैं भाईसाहब से मिला भी और नही भी मिला –

पहले मिलने के बारे में कह लेता हूं, ना मिलने का गिला बाद में ही करते हैं ।

जी हां, हम बच्चन संध्या के आयोजन के बारे में ही बात कर रहे हैं, पिछले 2-3 दिनों से दिमाग इसी उलझन में फंसा था कि कैसे बच्चन संध्या में हाजिरी लगाई जाये । अक्सर ऎसा होता है कि आदमी सोचता कुछ है और होता कुछ और ही है ।

यकायक मेरे समने अभिषेक और एश्वर्या खड़ॆ थे, अकस्मात मुझे कुछ कहने की बात ही नही सूझी, मै अपने मन की कोई भी बात उनसे नही कह पाया, न पा के बारे में, न ही ओबामा द्वारा दी गई दावत के बारे में, यहां तक कि भाईसाहब को चरण स्पर्श पहुंचाने की गुज़ारिश भी नही कर सका, बस यही कह पाया कि मैं ब्लाग पर लिखने वाला अभय शर्मा हूं और मेरे पास पास नही है साथ ही एश्वर्या को मैने वे दो पन्ने भी थमा दिये – प्रणय-प्रसंगिनि तथा कवि का सम्मान नामक कविताओं वाले । एश्वर्या ने अपने पास खड़ॆ एक व्यक्ति को मेरी ओर इशारा किया और शायद मुझको अंदर ले आने का संकेत उन सज्जन को दिया, मैं बहुत ही उत्साहित होकर लपक कर आयोजकॊं के पास पहुंचा और अपनी बात उनके सामने रख दी जिसे अनसुना कर दिया गया मै फिर लपक कर उन सज्जन तक पहुंचता तब तक वे वहां से अंतर्धान हो चुके थे ।

निराश हताश अभय शर्मा कभी इससे तो कभी उससे बस यही गुहार लगाता रहा कि यदि एक पास का इंतजाम हो जाये तो क्या ही अच्छा हो । जब कहीं से कोई बात बनती नही दिखाई दी तो पैसों तक का हवाला देकर पास हासिल करने की भी कोशिश की, प्रसून जोशी को प्रणाम कर यह फरियाद भी जोड़ दी कि आप भाईसाहब को यह बता दें कि मै यहां बाहर ही खड़ा हूं मेरे पास पास नही है, एक अन्य कविता के पीछे एक दूसरा संदेश मैने भाईसाहब कि लिये लिख दिया जो प्रसून जी को थमा दिया था मै आशान्वित था कि अब तो मेरा काम बन ही जायेगा, पर कहां साहब, समय गुजरता जा रहा था और स्वागत से पहले ही विदाई का आभास मुझे (आने के ही साथ जगत में कहलाया जाने वाला) हो रहा था ।

तभी किस्मत ने पलटा खाया एक बहुत ही सुशील कन्या जिसका नाम पायल था उसने मेरी परेशानी को समझा, मुझे धीरे से बताया कि बाईं तरफ़ अमित जी की वैन खड़ी है वे अभी अंदर नही ही गये होंगें, अगर वे आपको पहचानते है तो अवश्य ही आपको पास मिल सकता है । मैने आव देखा न ताव, तेजी के साथ निर्दिष्ट गली की तरफ़ लपका, कुछ एक पुण्य कर्म मैने किसी जन्म में अवश्य किये होंगे, एक सज्जन हाथ में कई एक पास लिये कुछ खास लोगों को बांट रहे थे, आनन-फानन में मैने अपना आई-कार्ड दिखाया और संक्षिप्त रूप में उन्ह यह भी बताया कि मै भाईसाहब के ब्लाग पर लिखता हूं, उन्होने बिना कुछ और कहे या सुने ही एक पास जिस पर वाई-41 लिखा मेरे हाथ में थमा दिया ।

मेरे पैरों में जैसे बिजली की सी चाल आ गई, जल्दी ही मैने घर पर फोन मिलाकर सविता व अमृत को अपनी इस सफलता की सूचना दी, और सीना चौड़ा करके आयोजकों को अपना पास दिखाते हुये तेजी से बच्चन संध्या के कार्यकरम मेम सम्मिलित होने के लिये जैसे उड़ा चला जा रहा था, मुझे तो उस समय यह भी ज्ञात नही था कि मेरे पास जो पास था वह बालकनी का पास था और वह भी आखिरी पंक्ति , मेरा दिमाग इस बात से बिल्कुल भी विचलित नही था, मेरी प्रसन्नता की कोई सीमा नही थी, मेरा दिमाग तो इस समय डॉक्टर बच्चन के साथ था । शीघ्रता के साथ मैने अपनी मज़िल पर लिफ़्ट रुकते ही हाल में प्रवेश किया । कार्यक्रम बस प्रारंभ ही हुआ था, शायद भवन के अध्यक्ष श्री सुरेन्द्र लाल मेहता स्वागत भाषण कर रहे थे । कुछ ही देर में पुष्पा भारती जी ने मच संभाल लिया था और भाईसाहब ने बिना भारी भरकम भूमिका के साथ काव्यांजलि की पहली कविता अर्पित की –

अकेलेपन का बल पहचान ..

अभय शर्मा
29/30 नवंबर 2009 1:15 AM IST

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